सपना में भगवान

सपना में भगवान

गजब हो गया। गजब कि सपना में आये। जी सपना में आये भगवान। पहले तो यकीन नहीं हुआ। फिर हुआ कुछ ऐसा कि यकीन तो करना पड़ा। यकीन इसलिए करना पड़ा कि मेरी कुछ बातों की खबर उन्हें थी, ऐसा उन्होंने इशारा-इशारा में जाहिर कर दिया। पहले तो मुझे लगा कि यह डाटा चोरी या साफ कहें तो निजता में सेंध का मामला हो सकता है। मन विचलित हो गया। भगवान के अलावा अन्य कोई किसी की निजता को इतने अविकल रूप में कोई जान ही नहीं सकता! प्रभु के अलावा कोई दूसरा अंतर्यामी तो हो नहीं सकता। सोचा तो इस तरह भी जा सकता है कि की प्रभु बनाई निजता की किलेबंदी को प्रभु के अतिरिक्त इतनी सफाई से कोई अन्य भेद ही नहीं सकता है। इस तरह सोचते हुए मुझे लगने लगा कि हो न हो यह ईश्वर का ही कोई-न-कोई संस्करण ही हो सकता है। पुराने संस्करण के भगवान के प्रति नास्तिकाना नजरिया रखना अलग बात है लेकिन इस नव अंतर्यामी भगवान को नकारा नहीं जा सकता है। मैं सोच ही रहा था कि भगवान ने मुस्कुराकर कहा कि नास्तिकता पर सोच रहे हो? इस पर इतना मत सोचो बालक! पता है कि तुम नास्तिक हो। तुम्हारी नास्तिकता के खंडित होने की बात किसी को न कानो-कान खबर होगी, न आँखों-आँख जाहिर होगी। मेरी बात सुनो। बहस में मत पड़ो जो माँगना हो जल्दी से माँग लो अपने लिए, जमात की बात करो।

- माँग लो, मौका है।

- सोचा नहीं प्रभु।

- सोचने-समझने में वक्त मत जाया करो। सोचना-समझना गये जमाने की लत है। जल्दी माँगो ... क्या दूँ!

-  मैं ने कहा प्रभु! नत मस्तक हूँ। आपके पास देने को बहुत है जो चाहे दे दें। बस अपना अहंकार न देना।

- दुष्ट मेरे अहंकार की बात करता है!

मैं माफी माँगने के लिए झुका तो झुकता ही चला गया। इतना झुका कि सपना टूट गया। हे प्रभु, इस टूटे सपना को कहाँ रखूँ!