साहिबानो मैं जहन्नुम की हकीकत से नहीं रुबरु
वहाँ खुदकुशी के रिवाज की कोई खबर है क्या
कल तक, दरिया जवान और आज नहीं सुर्खुरू
रेत में, भँवर के नाचने की कोई खबर है क्या
आज कब्र पर खिले मस्त फूल-सा नहीं जबरू
अब, मुर्दों के मुस्कुराने की कोई खबर है क्या
माँ समझती रोता है क्यों उसे देखकर बुतरू
उनके इधर से गुजरने की कोई खबर है क्या
बूढ़ी आँख में तस्वीर कौन इस तरह है उकरू
बोलो, गाँधी महात्मा की कोई खबर है क्या
यह जिंदगी है जैसे बकरी का तीसरा पठरू
कौन यहाँ पर छोड़ गया कोई खबर है क्या
जहन्नुम में खुदकुशी! जी कोई खबर है क्या
वहाँ खुदकुशी के रिवाज की कोई खबर है क्या
कल तक, दरिया जवान और आज नहीं सुर्खुरू
रेत में, भँवर के नाचने की कोई खबर है क्या
आज कब्र पर खिले मस्त फूल-सा नहीं जबरू
अब, मुर्दों के मुस्कुराने की कोई खबर है क्या
माँ समझती रोता है क्यों उसे देखकर बुतरू
उनके इधर से गुजरने की कोई खबर है क्या
बूढ़ी आँख में तस्वीर कौन इस तरह है उकरू
बोलो, गाँधी महात्मा की कोई खबर है क्या
यह जिंदगी है जैसे बकरी का तीसरा पठरू
कौन यहाँ पर छोड़ गया कोई खबर है क्या
जहन्नुम में खुदकुशी! जी कोई खबर है क्या
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