सूरज चाँद तारे हैं बुझा-बुझा-सा आसमान क्यों है?
फसलें लहराई बहुत फिर! उदास खलिहान क्यों है?
सपनाते को, क्या खबर साँझ क्यों, बिहान क्यों है!
सवाल बस यह, मुख्तसर कि इतना नादान क्यों है?
भूख, अ-भाव से इतनी गहरी हमारी पहचान क्यों है?
आदमी की अंदरुनी जरूरत है लाचार विज्ञान क्यों है!
आदमी का मन, मन का कोना अब सुसान क्यों है?
कहा, सुना तो बहुत पर बेमानी हर बयान क्यों है!
देवता मुस्कुरा रहे, पूजा का फूल लहुलुहान क्यों है?
यह कौन-सी हवा, आदमी से सभी परेशान क्यों है!
फसलें लहराई बहुत फिर! उदास खलिहान क्यों है?
सपनाते को, क्या खबर साँझ क्यों, बिहान क्यों है!
सवाल बस यह, मुख्तसर कि इतना नादान क्यों है?
भूख, अ-भाव से इतनी गहरी हमारी पहचान क्यों है?
आदमी की अंदरुनी जरूरत है लाचार विज्ञान क्यों है!
आदमी का मन, मन का कोना अब सुसान क्यों है?
कहा, सुना तो बहुत पर बेमानी हर बयान क्यों है!
देवता मुस्कुरा रहे, पूजा का फूल लहुलुहान क्यों है?
यह कौन-सी हवा, आदमी से सभी परेशान क्यों है!
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