अंधा प्रकाश

जोरशोर से कही बात
सुनाई नहीं देती है
बहुत तीखी है
तेरी फुसफुसाहट

अंधा बना देता है
प्रकाश! अंधा प्रकाश!!
जो प्रकट है वह
दिखाई नहीं देता
जैसे कि कपट

➖ मैं तुम्हारे तिलस्म को
भीतर से जानता हूँ वामदेव
➖ यह भी कि उनके भीतर
कुछ है ही नहीं

तो कान आँख दोनो ही गये मनुआ भया उदास
अभी वक्त लगेगा लाइलाज नहीं यह जो है एहसास

'लूट लिया' या 'लुट गया'

‘लूट लिया’ या ‘लुट गया’ समय का सब से कारगर पदबंध और सक्रिय पदार्थ है। जिंदगी ईमान लेस होकर रह गई तो क्या कैश लेस और क्या लेस कैश!

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यह सच है कि मैंने झूठ को रचने की कोशिश में सच को नजदीक से देखने की तमीज हासिल की है। कई अगर-मगर हैं, डिमोनिटाइजेशन के सच और झूठ अपनी जगह। मुझे लगता है कि कैश लेस या कह लीजिये लेस कैश की प्रक्रिया का विरोध अंततः पिछली बार के कंप्यूटरीकरण के विरोध की तरह हो जायेगा। उस दौर के कंप्यूटरीकरण विरोध की सक्रियता में खुद मैं भी शामिल था। इस दौर में! आज, कंप्यूटर के बिना अपनी रचनात्मक सक्रियता को जारी रखने या विरोध की किसी सक्रियता में निष्क्रियतः भी शामिल होने की बात सोचना मुश्किल है, कष्टकर है। कैश लेस या कह लीजिये लेस कैश की प्रक्रिया के विरोध के तर्क को भारत के पिछड़े हिस्से के हवाले से समझा नहीं जा सकता। यह दुश्चक्र के भारी दबाव का वृहत्तर क्षेत्र बना रहा है। यदि सवाल हो यह कि लोग कैश लेस या लेस कैश क्यों हैं तो जबाव होगा क्योंकि पिछड़े हैं। यदि सवाल हो यह कि लोग पिछड़े क्यों हैं जबाव होगा क्योंकि कैश लेस या लेस कैश हैं! ऐसी ट्रेजडी है नीच! हाँ ट्रांजेक्शनल और इनफ्रास्ट्रक्चरल सिक्योरिटी का सवाल महत्त्वपूर्ण है। लेकिन वैसे भी एक्चुअल, रियल, लाइव सिक्योरिटी की स्थिति के बारे में स्थिति कम चिंताजनक नहीं है।

भारत की बहुत बड़ी आबादी तो वैसे भी कैश लेस या लेस कैश की जिंदगी बसर कर रही है! दो सौ से भी ज्यादा कीमत पर दाल खरीद सकते हैं, घरेलू काम में नियुक्त लोगों का दो पैसा नहीं बढ़ा सकते! कल की तुलना में आज ‘लूट लिया’ या ‘लुट गया’ समय का सब से कारगर पदबंध और सक्रिय पदार्थ है। जिंदगी ईमान लेस होकर रह गई तो क्या कैश लेस और क्या लेस कैश! ‘लूट लिया’ या ‘लुट गया’ समय का सब से कारगर पदबंध और सक्रिय पदार्थ है। जिंदगी ईमान लेस होकर रह गई तो क्या कैश लेस और क्या लेस कैश!  बाजार से गुजरे कल की तुलना में डेढ़ गुना या दो गुना कीमत पर सब्जी खरीद सकते हैं लेकिन बाजार से लौटते हुए रिक्शा वाले को दो पैसा अधिक दे नहीं सकते हैं! और दें भी कहाँ से! सरकारी कर्मचारियों के एकांश की बात छोड़ दीजिये देर-सबेर महँगाई भत्ता से कुछ क्षतिपूर्त्ति हो भी जाती है, लेकिन बड़े पैमाने पर कामगारों का दरमाहा सालों नहीं बढ़ता है। उनके लिए न कोई वेतन वृद्धि और न कोई जिंदा और जागरूक वेतन आयोग। कुशल स्किल्ड या अकुशल अनस्किल्ड कामगारों न्यूनतम मजूरी या मिनिमम वेज एक बार तय हुआ तो हो गया। ‘लूट लिया’ या ‘लुट गया’ समय का सब से कारगर पदबंध और सक्रिय पदार्थ है। जब जिंदगी ही ईमान लेस होकर रह गई तो क्या कैश लेस और क्या लेस कैश!  

मैजिक मेरी जान, लॉजिक नहीं

मैजिक मेरी जान, लॉजिक नहीं
➖➖😂➖➖
ये जो दुनिया है
मैजिक से चलती है
मैं लॉजिक की तलाश करता रहा

पड़पीड़न में जो मजा है वह ब्लैक मैजिक है
मुहब्बत में जो मजा है वह
पिंक मैजिक है
इलेक्शन लड़ने का मजा
लाल मैजिक है
बीमार के चेहरे पर रौनक
येलो मैजिक है

हर रंग में एक मैजिकहै
हर मैजिक में एक रंग है
नहीं नहीं यह कोई
सियासी बात नहीं

बस इतना कि
शब्दों का जादूगर
कवि नहीं होता
अब शब्दों में
कोई लॉजिक बचा नहीं

कवि करे तो क्या करे! कविता!
ओह मुहब्बत!
यह भी तो
मैजिक है मेरी जान, लॉजिक नहीं

वे दिन हवा हुए
कभी लॉजिक का भी अपना मैजिक था
मैजिक को लॉजिक की
जरूरत नहीं थी
जरूरत नहीं थी कि झूठ को
अमूमन किसी की जरूरत
नहीं होती

लेकिन मुझे तुम्हारी जरूरत है
अब लॉजिक हो कि मैजिक हो
मुझे तुम्हारी जरूरत है
कहूँ डेमोक्रेसी तो
खुलकर बिखर जायेंगे
बिखरी अलकें ज्यों तर्कजाल
बुरा मान जायेंगे
महा कवि जयशंकर प्रसाद

जोखिम उठाता हूँ कह देता हूँ डेमोक्रेसी
कोई लॉजिक नहीं, बस मैजिक