जाने क्यों

जाने क्यों मन मचलता है
जाने क्यों दिल नहीं लगता है 
कैसी बही बयार
मन का पाल नहीं खुलता है 
रेत-ही-रेत नदी में जाने क्यों
अब इधर से पानी नहीं बहता है 
सूरज तो वैसे ही
उठता है, ढलता है 
अंधेरा आराम से टहलता है!
वक्त कभी इस तरह भी बदलता है! 

11 टिप्‍पणियां:

Manisha Goswami ने कहा…

भावनाओं से ओतप्रोत सृजन

Anuradha chauhan ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

रेत-ही-रेत नदी में जाने क्यों
अब इधर से पानी नहीं बहता है ---गहन लेखन।

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत ही बढ़िया ।

मन की वीणा ने कहा…

गहन भाव!
सुंदर सृजन।

Bharti Das ने कहा…

बहुत सुंदर कृति

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

आभार

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

आभार

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

आभार

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

आभार

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

आभार