इस रात की हुस्न को मयस्सर कोई चाँद सितारा नहीं
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हजार बाहों से पानी
मुझे पुकारता रहा
हमारी जमीन को मंजूर नहीं
हवा को भी यह गवारा नहीं।
उलझे हुए रहे
आखिर तक मेरे खयालात
और ख्वाव भी कुछ बेतरतीब-से
मगर आवारा नहीं।
यतीम तो थे कभी नहीं,
अगरचे गोद लिए गये
फिर यतीमी का आलम
रूह पर सवार हो गया
हुस्न वीराना हुआ तो
किसी ने सवारा नहीं।
बेवजह तो मौत होती नहीं
जिंदगी के सबब को
किसी ने सही ढंग से
पुकारा नहीं।
ये जो खतो किताबत थे
मुकद्दस हर्फों का था
इनमें कोई गुजारा नहीं।
हजार बाहों से
पानी मुझे पुकारता रहा
मैरी जमीन को यह गवारा नहीं
हवा को भी यह मंजूर नहीं।
वात तो बस इतनी-सी कि
ठोकरें मुस्कुराती रहीं
घायल कदमों का
कोई सहारा नहीं।
ऐतबार की बात अपनी जगह
इस रात की हुस्न को मयस्सर
कोई चाँद सितारा नहीं।
1 टिप्पणी:
सुन्दर
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