करोना के पहले और करोना के बाद विश्व व्यवस्था
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करोना का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। अधिकृत सरकारी और प्रशासनिक निर्देशों का पालन कड़ाई से करना जरूरी है। इस समय बहुत ही डरावनी स्थिति है। अलग रहना ही सब के साथ होना है।
सभ्यता का इतिहास जब लिखा जायेगा तब पिछले चालीस साल का एक अलग अध्याय होगा। 1980 से 2020 के बीच दुनिया का चक्का बहुत तेजी से घूमा, इतनी तेजी से घूमा कि इसकी धूरी ही दरक गई। करोना के पहले और करोना के बाद विश्व व्यवस्था के बदलाव की कथा इतिहास की सिसकियों के साथ लिखी जायेगी। जाने मेरा मन क्यों ऐसा संकेत दे रहा है! मन यानी 6ठी इंद्रिय। 6ठी इंद्रिय के पास संकेत तो होते हैं, सबूत नहीं होते हैं। 6ठी इंद्रिय पर बात करने के पहले कुछ और शब्दों पर बात कर लेते हैं, जरूरी है। साहित्य तो सभ्यता की अंतर्ध्वनि को शब्दों से ही पकड़ता है, इसलिए शब्द।
इन दिनों चाणक्य की चर्चा आम जुबान पर रहती है, सूत्र यहीं से सुलझाते हैं। साम, दाम, भय, भेद, दंड, माया, उपेक्षा, इंद्रजाल।। साम यानी प्रशंसा, पुरस्कार। दाम यानी पैसा, वस्तु भी। भय यानी असुरक्षा की आशंका। भेद यानी रहस्य। दंड यानी शक्ति का कोप। माया जो है ही नहीं या जो है उस पर जो नहीं है उसकी प्रतीति। उपेक्षा यानी जो है उसका होना न होने जैसा कर दिया जाये। ये सभी अलग-अलग सूत्र हैं जो अस्ल में नाभिनालबद्ध होकर भीतर से एक ही होते हैं। जब साम, दाम, भय, भेद, दंड, उपेक्षा और माया का इस्तेमाल कर लिया जाता है तब बारी आती है इंद्रजाल की। इंद्रजाल यानी जादू, धोखा का शक्ति का जाल। इंद्र देवताओं के राजा रहे हैं। महा शासक। अब इंद्र से इंद्रजाल का क्या रिश्ता हो सकता है! इस रिश्ते को मिलकर समझना और खोजना होगा। बहर हाल यह कि इंद्रजाल के प्रभाव में आई आबादी की इंद्रियों में दिमाग को सही सूचना देने में शक्ति नहीं रह जाती है। इसलिए ईश्वर को भी इंद्रियातीत, यानी बियांड इंद्रिय, अर्थात इंद्रियों के प्रभाव से पार जाकर ही समझा जा सकता है। ईश्वर यानी सत्य। सत्य जो न होकर भी नहीं होता है और होकर तो होता ही है। इसकी सूचना दिमाग को जिस से मिलती है उसी का नाम 6ठी इंद्रिय है। जी, 6ठी इंद्रिय! 6ठी इंद्रिय, जो न होकर भी होती है और होकर तो होती है। उसी 6ठी इंद्रिय का संकेत मानें तो यही लगता है कि करोना के पहले और करोना के बाद विश्व व्यवस्था के बदलाव की कथा इतिहास की सिसकियों के साथ लिखी जायेगी।
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