जाति
सर्वेक्षण का नतीजा
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बिहार में जाति सर्वेक्षण का नतीजा प्रकाश में
आ गया है। इस पर तरह-तरह से चर्चा की जायेगी लेकिन यह तय है कि इससे भारतीय
राजनीति में तात्त्विक और गुणात्मक अंतर आयेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अंतर
का प्रभाव सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहेगा — सामाजिक न्याय के
साथ-साथ सामाजिक सचेतनता, सिद्धांतिकी और आर्थिकी पर भी अनिवार्यतः पड़ेगा — जीवन-स्तर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा — सामाजिक न्याय और
व्यक्ति न्याय को आमने-सामने न कर दिया जाये। उम्मीद की जानी चाहिए — वोटों की गोलबंदी से सीमित नहीं होगी और स्वाभाविक रूप से उत्पन्न
होनेवाली नकारात्मक ऊर्जा को शून्य नहीं भी तो, न्यूनतम स्तर पर बनाये रखने में
कामयाब रहेगी; अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई की विभिन्न कुप्रवृत्तियों की वृद्धियों को
भी रोकने में कामयाब रहेगी। जाति सर्वेक्षण के नतीजे का उम्मीद से स्वागत किया
जाना चाहिए।
प्रसंगवश, इधर एक प्रवृत्ति देखने में आ रही है
— सामुदायिक मुद्दों पर समुदाय
के सदस्यों को ही चर्चा करनी चाहिए — समुदाय से बाहर का
कोई इस के पक्ष में भी चर्चा न करे! अभी सत्य हिंदी पर
अंबरीश कुमार अपने जनादेश कार्यक्रम में जाति सर्वेक्षण के नतीजों पर चर्चा कर रहे
थे — उस पर 37 दर्शक देखते हुए दिख
रहे थे, किसी ने पैनल के समुदाय का सवाल उठा ही दिया। यह अपवाद हो सकता है — उम्मीद की जानी यह प्रवृत्तिजन्य लक्षण नहीं है!
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