दुनिया चपटी है, सपाट है!

दुनिया चपटी है, सपाट है!

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मेरी किसी पोस्ट पर एक मित्र की टिप्पणी पर बात हो रही थी किन से! किस पोस्ट पर! याद नहीं। संदर्भ था — धरती गोल है या चपटी। वे बार-बार कह रहे थे धरती गोल है। मैं जोड़ देके कहे जा रहा था मेरी दुनिया चपटी है, सपाट है। मैं परती, धरती, पृथ्वी, वसुंधरा और दुनिया आदि के अंतर को जानता हूँ जो किसी प्रयोजन के लिए निर्धारित नहीं है वह परती है, जो विविध प्रयोजन के लिए निर्धारित है वह धरती है, जो किसी खास प्रयोजन के लिए अलग (पृथक) की गई है वह पृथ्वी है, जिसके अंदर पहले से प्रकृति ने कुछ (खनिज, रत्न, आदि) रखा है वह वसुंधरा है, जो मनुष्य ने बसाया है वह दुनिया है; संसृति है, संसार यानी जो चलती-बदलती रहती है, बांग्ला में खिसकने को सोरे (सर : संदर्भ संस्कृत शब्द-रूप) जान कहते हैं। फिर भी मैं कहे जा रहा था मेरी दुनिया चपटी है। मुझे उम्मीद थी कि वे पूछेंगे कि मैं दुनिया को चपटी, सपाट क्यों कह रहा था! उम्मीद यह भी थी कि किसी-न-किसी मित्र की टिप्पणी आ जायेगी जो उनको संतुष्ट कर सके। बहरहाल, उम्मीद कुछ ज्यादा थी — न उन्होंने पूछा, न किसी अन्य की कोई टिप्पणी आई! बात आयी-गयी हो गयी, जैसा कि होता ही है।  

उम्मीद थी, कि सन् 1982 ई. में लेबनान पर इजरायली आक्रमण एवं ‘बसरा शतीला नरसंहार’ पर बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारिता को दिये जानेवाले प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार और डेविड के. शिपलर के साथ जॉर्ज पोल्क पुरस्कार प्राप्त करनेवाले तथा न्यूयॉर्क टाइम्स के जेरूसलम ब्यूरो प्रमुख रहे अमरीकी पत्रकार फ्रीडमैन की पुस्तक The World Is Flat का उल्लेख कहीं से कोई करेगा। किसी ने कोई उल्लेख नहीं किया, हो सकता है जो उल्लेख कर सकते थे उनकी नजर से हमारी बातचीत गुजरी ही न हो!

इस बार इस इलाके में तना-तनी बढ़ी है तो, मुझे फिर महत्त्वपूर्ण पत्रकार फ्रीडमैन की पुस्तक — The World Is Flat याद आ रही है। अब तो, भयानक युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया है, The World Is Flat, एक महत्त्वपूर्ण किताब है, अवसर और सुविधा हो तो देखियेगा। सत्योपरांत समय में झूठ और सच के संबंध को वैसे भी जानना दिलचस्प है है कि नहीं! हैये है

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