तब पिता जीवित थे

तब पिता जीवित थे
वे नादानी के दिन थे
हिंसक पशु के दांतों की चमक से डर नहीं लगता था
लगता था ये डराने के दांत हैं, काटने के नहीं 
भवितव्य का डर नहीं था
जाने किस बिंदु पर पहुंच कर 
नादानी कम होने लगी
समझदारी बढ़ने लगी
परिस्थिति बदलने लगी
जब अपने हिस्से में भविष्य कम बचा है
भावित का डर बढ़ रहा है 
घर बचा सकता है डर से 
मकानों के बीच अगर 
बचा सके हम घर
बची रहे पृथ्वी बचा रहे घर
अब प्रार्थना में हो यह एक स्वर
एक अनुस्वर

1 टिप्पणी:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

अब प्रार्थना में हो यह एक स्वर
एक अनुस्वर

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति