भीड़ चाहे जितनी भी बड़ी हो
भीड़ का कोई कंधा नहीं होता
भीड़ के पास मार होती है
भीड़ के पास सम्हार नहीं होता है
राजा के पास
बेकाबू भीड़ न फटके
पूरा इंतजाम होता
राजा अपने बचाव में
प्रजा को भीड़ में बदल देता है
भीड़ में बदलने और भीड़ से बचने
को सियासत कहते हैं
हो सके तो भीड़ में बदले जाने से
खुद को बचाना
भीड़ में बदले जाने से खुद को बचाना
तुम जो नागरिक हो
आखिरी उम्मीद हो
उम्मीद हो मेरी जान
इस ना-उम्मीद समय में प्रार्थना!
सियासत और भी है, बगावत और भी है!
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