बेड़ियाँ

#वंचित_प्रताड़ित_जीवन
बेड़ियों के बारे में क्या कहूँ! कहूँ। बेड़ियाँ चाहे जितनी चमकदार हों खूबसूरत कला की अन्यतम नमूना हों, हम उनकी चाहे जितनी प्रशंसा करें उन से खुद के जकड़े जाने को अच्छा तो नहीं मान सकते हैं न, नहीं मानते हैं न। तो फिर दूसरों की बेड़ियों की खूबसूरती का बखान क्यों। किसी का जख्म चाहे जितनी पवित्र छवियों से मिलता हो, इससे उसका दुख कम नहीं होता पगले! बढ़ जाता है दुख, कब समझेगा, वह भी जो दिल का सच्चा है!
हम व्याख्या में व्यस्त रहे और उसने बखिया उधेड़ दी! है न कमाल! 

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