राजा को तुरंता सपना आया
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यह एक कहानी है। कहानी में एक राजा है। सपना किसी को आ सकता है। तो, राजा को सपना आया। सपना सचमुच का आया। तुरंता सपना। सपना आया कि वह अपना हुलिया बदलकर प्रजा का हाल चाल और माल मलाल का जायजा लेने निकल पड़ा है। वह एक बगीचे में खड़ा है। देखता क्या है कि एक आदमी ऊपर से गिरा और धम्म की आवाज हुई। इस आवाज से सपना थोड़ा डोल गया, लेकिन रुका नहीं। वह सपना में करुणा से भीग गया। ध्यान रहे, यह कहानी है। सपना कहानी का हिस्सा है। इसका मिलान सच से करना बचकाना है। तो, करुणा से भीगा हुआ राजा आदमी के पास पहुँचा। राजा ने आदमी से पूछा, अबे क्या हुआ! आदमी चुप। गुस्ताख के चुप रहने से राजा को गुस्सा तो बहुत या लेकिन क्या करता। हुलिया बदल कर हाल जानने निकला था सो बेबस था। उसके अचरज का ठिकाना नहीं रहा जब उसने गौर किया कि वह रो भी नहीं रहा था। ऐसा तो होता ही है कि कोई किसी चीज पर गौर करने से अचरज से भर जाये। तो, राजा भी अचरज से भर गया। करुणा जब अचरज से भर जाये तो क्या होता है, आप जानते हैं। यह मियादी बात है। उसने आदमी से पूछा तू रो क्यों नहीं रहा है बे। आखिर तू इतने ऊपर से गिरा है। अब उस आदमी ने चुप्पी तोड़ी, कहानी में। उसने कहा, मैं रोऊंगा तो राजा की बदनामी होगी। लोग कहेंगे इस राजा के राज में आदमी रोता है। कुत्ता रोने से दूसरे का अशुभ होता है, आदमी के रोने से उसके खुद का अशुभ होता है।
राजा ने सोचा। सपना में सोचा। आदमी समझदार है। इस राज में समझदार लोग कम हैं। नहीं रोने से भी तो राजा की बदनामी होगी। लोग कहेंगे इस राजा के राज में रोने पर भी बंदिश है। आदमी फिर चुप। राजा को फिर गुस्सा आया। हुलिया बदलने से क्या होता है, गुस्सा तो राजा को आता ही है, बात-बात में। बहुत डराने पर आदमी ने कहा मैं कुछ भी बोलूंगा तो उसे राजा के पक्ष में याा फिर विपक्ष में घसीट ले जायेंगे। इस घसीटा-घसीटी में मेरा पक्ष तो खो ही जाता है। मेरा भी कोई पक्ष हो सकता है, यह कोई मानता ही नहीं है। मेरा पक्ष खो गया है। जिसका पक्ष खो जाये उसके लिए खामोशी ही एक मात्र सहारा है। इतने में राजा की आँख खुल गई। आँख खुल जाने के बाद सपने रफूचक्कर हो ही जाते हैं। कभी-कभी नींद भी उड़ जाती है।
दूसरे दिन राजा को फिर सपना आया। सपना में राजा ने दरबारियों को सपना का सच बताया। किसी दरबारी ने मुंह नहीं खोला। राजा ने पूछा कि क्या तुम लोगों का भी पक्ष खो गया है। जवाब कोई नहीं था। लेकिन राजा को गुस्सा नहीं आया। राजा के कान में अपनी ही आवाज आती रही। दरबारी अपनी मुंडी धुनते रहे। उधर, अपनी प्रतिध्वनि से राजा को लगता रहा कि सभी बोल रहे हैं। बोल ही नहीं रहे हैं, खुशी से झूम भी रहे हैं। अगले दिन राजा को क्या सपना आयेगा यह बाद की बात है। जब आयेगा, तब आयेगा। फिलहाल, अपनी मुंडी धुनते रहिये। ध्यान रहे, राजा को सपना आया। सपना में यह सब हुआ। यह तुरंता सपना में सच की कहानी है, सच में तुरंता सपना की कहानी।
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