शहीद भगतसिंह को प्रणाम
विचार व्यवहार और देश प्रेम को प्रणाम
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शहीद भगतसिंह का आज जन्म दिन है।
शादी के लिए भगतसिंह पर परिवार का, खासकर दादी का दबाव, बढ़ रहा था।
भगतसिंह शादी के प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। उन्होंने पिता जी को पत्र लिखा —
पूज्य पिता जी, नमस्ते।
मेरी जिन्दगी मकसदे-आला यानी आजादी-ए-हिन्द के असूल के लिए वक्फ हो चुकी
है। इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी ख़ाहशात बायसे कशिश नहीं हैं।
आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त एलान
किया था कि मुझे खिदमते-वतन के लिए वक्फ दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की
प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ। उम्मीद है आप मुझे माफ फरमायेंगे।
आपका ताबेदार,
भगतसिंह
मॉडर्न रिव्यू में “इन्कलाब जिन्दाबाद” को निरर्थक ठहराने की चेष्टा की गई
थी। भगत सिंह और बी. के. दत्त ने इस संदर्भ में संपादक को अपना प्रतिवाद लिखा। पत्र
की भाषा और भाव दखने-समझने लायक है। आज के दिन प्रणाम करते हुए स्वतः स्पष्ट पत्र का प्रारंभिक और अंतिम अंश प्रस्तुत है —
“सम्पादक महोदय,
मॉडर्न रिव्यू।
आपने अपने सम्मानित पत्र के दिसम्बर, 1929 के अंक में एक टिप्पणी
“इन्कलाब जिन्दाबाद” शीर्षक से लिखी है और इस नारे को निरर्थक
ठहराने की चेष्टा की है। आप सरीखे परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी सम्पादक की
रचना में दोष निकालना तथा उसका प्रतिवाद करना, जिसे प्रत्येक भारतीय सम्मान
की दृष्टि से देखता है, हमारे लिए एक बड़ी धृष्टता होगी। तो भी इस प्रश्न का उत्तर देना हम अपना
कर्त्तव्य समझते हैं कि इस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है। यह आवश्यक है,
क्योंकि इस
देश में इस समय इस नारे को सब लोगों तक पहुँचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया
है।
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यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव न रहे ओर वह नयी व्यवस्था के लिए
स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके। यह है हमारा वह
अभिप्राय जिसको हृदय में रखकर हम “इन्कलाब जिन्दाबाद' का नारा ऊँचा करते हैं।
22 दिसम्बर, 1929 भगतसिंह - बी.के. दत्त”
(साभार : इन्कलाब जिन्दाबाद क्या है? : भगतसिंह के पत्र और दस्तावेज़)
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