दुर्जन की करुणा
जीवन में बहुत तरह के कष्ट हैं। जीवन में कष्ट के प्रवेश के बहुत सारे रास्ते हैं। आदमी किस-किस रास्ते पर पहरा बिठाये! करुणा सहज मानवीय गुण है। आदमी के दुख को करुणा कम करती है। दुखी आदमी करुणा को सहज स्वीकार लेता है। करुणा में दुख से निकलने के रास्ते और तरकीब का आश्वासन होता है। हमारे वैयक्तिक और सार्वजनीन जीवन में भी यदा-कदा करुणाकरों से मुलाकात होती रहती है। कुछ करुणाकर तो पेशेवर हैं –– पेशेवर करुणाकर, यानी वे करुणा को जिन्होंने अपना पेशा ही बना लिया है।
पेशेवर करुणाकर करोना से कम खतरनाक नहीं होते हैं। आजकल ऐसे पेशेवर करुणाकरों के छोटे-बड़े संस्करणों के आधिक्य से हमारा जीवन आक्रांत है। दुख की अवस्था में इनकी स्वीकार्यता बढ़ जाती है। अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए ये जीवन में दुख बढ़ाने के काम करने से भी नहीं हिचकते ––– जो दुख का विषय नहीं है उसे भी दुख का विषय बनाने में कामयाब हो जाते हैं –– असली दुख को ढक लेनेवाला नकली दुख। नकली दुख का, दुख के डर का ऐसा खाका खींचते हैं कि सहज मति आदमी पेशेवर करुणाकरों के मोह पाश में बंध जाता है। इनके सबसे बड़े संस्करण करुणा निधान के आसन पर लपकके कब्जा करने के जुगत में रहते हैं, बल्कि कर लेते हैं। ऐसा नहीं कि ये पेशेवर करुणाकर आज ही प्रकट हुए हैं –– भले ही गणना में आज इनकी तादाद अधिक है। सहज मति लोग भी इनके फाँस में पड़कर दुर्जन बन जाते हैं। पेशेवर करुणाकर इनके नेता बनकर प्रकट होते हैं –– अंग्रेजी में इन्हें डेमागाग (Demagogue) कहा जाता है। जीवन में दुर्जन की करुणा के बुरे असर को कबीरदास ने भी पहचाना था, तुलसीदास ने भी पहचाना था। पहले कबीर :
दुर्जन की करुणा बुरी, भलौ सज्जन की त्रास। सूरज जब गरमी करै, तब बरसन की आस।।
मतलब फ है –– दुर्जन की करुणा बुरी, इससे अच्छा सज्जन का कठोर व्यवहार। सूरज अपने रुद्र ताप से जन-जीवन को परेशानियों में प्रथमतः डाल तो देता है, लेकिन अंततः सब के हित में बादल बरखा की संभावना रचता है। इस प्रसंग में एक उदाहरण तुलसीदास से, करुणा से भरी मंथरा कैकेइ से कहती है :
भानु कमल कुल पोषनिहारा। बिनु जल जारि करइ सोइ छारा।।
कैकेइ कहती है ––– जो सूरज कमल को प्रसन्न करता है, कमल का पोषण करता है, वही सूरज पानी के अभाव में उसे जलाकर खाक कर देता है –– जिस सत्ता के बल पर तुम निश्चिंत हो, उस सत्ता के समीकरण के बदल जाने से तुम्हारा क्या हाल होगा! तुम्हें इसकी खबर नहीं! यह दुर्जन की करुणा का उदाहरण है –– आगे की कथा तो मालूम ही है न!
चारों तरफ घूम रहे दुर्जनों की करुणा के फाँस में पड़ने से कैसे बचेंगे? या मन मोहित है, अभी भी! देख लीजिए असली संत तो पहले से चेताते रहे हैं –– हमहिं रहे अचेत; न हुए सचेत और चिड़िया चुग जाये खेत तो असली संतों का क्या दोष! नकली का कह नहीं सकता!
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