संदर्भ : जय जय भैरवि क गायन मे ठाढ़ भेनाइ
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विभूति आनन्द जी क एहि विचार आ व्यवहार क प्रति सम्मान आ समर्थन रखैत निवेदन।
आध्यात्मिक प्रसंग क भौतिक आख्या क अभाव एहि तरह क द्वंद्व क कारण भ जाइत छै। विद्यापति क एहि गीत में निहित सांस्कृतिक संघर्ष क करुण अनुगूँज आ संघर्ष क ऐतिहासिक समाहार क प्रेरणा सहज सुमति क विकल आकांक्षा क रूप में अभिव्यक्त होइत आएल छै। हम सहज सुमति क विकल आकांक्षा क उपलब्धि क तत्परता में मानसिक रूपें ठाढ़ होयबाक प्रति संवेदनशील हेबाक महत्व के बुझैत ओहि संवेदनशीलता क शारीरिक अभिव्यक्ति के संगे ठाढ़ हेबाक सामूहिकता क विरोध मे नहि जा सकैत छी। ठाढ़ भेला क बाद चलनाइ, आगू बढ़नाइ स्वाभाविक। एहि स्वाभाविकता क सम्मान नहि क बैस जाइत छी। शारीरिक रूपें ठाढ़ भेनाइ आ मानसिक रुपें बैस गेनाइ हमर सांस्कृतिक विडंबना अछि। संभव होय त शारीरक रूपें ठाढ़ होयबा स असहमति क बदले मानसिक रूपें बैस जेबाक प्रतिकार पर सोचब प्रासंगिक।
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
जय जय भैरवि
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