संवाद जरूरी है


जिंदगी को हर पल जीना होता है। संघर्ष और कर्तव्यबोध से भरी हुई जिंदगी हमेशा सक्रिय प्रेरणा हैं। कई बार आदमी अपने अनजाने भी ऐसा कुछ कर जाता है जिसके दूसरे के लिए महत्त्व का पता उसे खुद भी नहीं होता है। जब पीछे मुड़कर, थोड़ा

ठहर कर सोचता है तो कभी-कभी खुद भी अचरज से भर जाता है कि यह मैंने किया है। हाँ यह मुड़ना, थोड़ा ठहरना, थोड़ा सोचना थोड़े मुश्किल से होता है।

जिंदगी को अपने तरह से जीना चाहिए। संवाद जरूरी है उससे जिससे हम अपना सुख-दुख बाँट सकें। छोटी-छोटी खुशियाँ जिंदगी को मनोरम बनाती हैं छोटे-छोटे दुख जीवन को दुर्भर बना देते हैं। मैं जानता हूँ कि दिल में उमंग हो, भाव हों तो पेड़-पौधे, फूल-पत्ती, पूरबा-पछबा, सूरज-चाँद, रंग-पाखी सभी संवाद करने लगते हैं आपस में और हमारे संवाद के सहयोगी, संवाहक बनते हैं। याद है वो दिन जब हम मेघ से अपना मन कहते थे और मेघ तुम से मेरा ... हम से हमारा मन कहता था गरज-बरसकर... हम चाँद से कुछ कहते थे और चाँद आधी बात कहकर बादलों में छुपकर हमें सताता था.. बहुत मनुहार के बाद सामने आता था... बहुत मनाने पर पूरी बात बताता था... हवा का एक झोंका आता था और मन को सँवार जाता था... और बरखा रानी दूब को हरियाने के पहले हमारे मन को हरित-क्रांति की संभावनाओं से भर देती थी... याद है कैसे सारी-सारी रात तारों से हम बतियाते थे ... उनकी बातें गुप-चुप सुन लेते थे... और तारे कभी-कभी तो हम पर टूट भी पड़ते थे... आज मगर थोड़ा कठिन हो गया है... दिल के उमंग को इन सबसे जोड़े रखना.. मगर असंभव नहीं यह आज भी...तब हमारे पास नेट और फेस बुक नहीं था... अब तो यह भी है... संवाद का नया साधन...
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