इंतजार
रहता था पहले किसी-न-किसी का इंतजार
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
नहीं रहता अब किसी का कोई इंतजार
पहले रहता था बहुत सारी चीजों का इंतजार
कहीं से कोई चिट्ठी-पत्री आये
इंतजार रहता था डाकिये का
डाकिया तब मेरे इंतजार का एक सब-से बड़ा आसरा था
जिंदगी थोड़ी व्यवस्थित हुई
राष्ट्रीय पुस्तकालय की सीढ़ियों पर
किसी वृक्ष की छाँव में
कभी बैठकर, कभी लेटकर इंजार रहता था
मित्रों का संभावनाओं से भरे हुए कवियों का
हमेशा रहता था इंतजार घड़ी के काँटों के घूमने का
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
रहता था पहले किसी-न-किसी का इंतजार
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
नहीं रहता अब किसी का कोई इंतजार
प्रेमिकाएँ तो थी नहीं, न उनके होने की कोई गुंजाइश थी
फिर भी उनका इंतजार रहता था
सब से ज्यादा इंतजार रहता था संपादकों के रुख का
पत्रिकाओं का, कविताओं को, कहानियों का
उत्तेजनाओं से भरा इंतजार
काम पर जाता था समय से
वेतन मिल जाता था समय पर
चल रही थी गृहस्थी, पूरा परिवार माथे पर था
लेकिन तब वह सब बोझ नहीं था
न कहूँगा कि इनके मुतल्लिक कोई इंतजार नहीं रहता था
रहता था जरूर मगर उस इंतजार में कोई उत्तेजना नहीं थी
रहता था पहले किसी-न-किसी का इंतजार
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
नहीं रहता अब किसी का कोई इंतजार
रहता था इंतजार खबरों का
अखबार का, अखबार जो खबर का बहुवचन है
खबरों की बहुवचनात्मकता बची नहीं रही
न बचा रहा अखबार का इंतजार
रहता था बहुत सारी बातों का इंतजार
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
नहीं रहता कोई इंतजार अब किसी का इंतजार
दीवार घड़ी को देखता हूँ
काँटे वहीं घूमते रहते हैं गोल-गोल
उन्हें मेरे देखने न देखने से कोई फर्क नहीं पड़ता
बस घूमते रहते हैं गोल
तारीख बदल जाती है
दिन नहीं बदलता है
महीनों में कहीं जाना हुआ
उठकर चल देता हूँ
मनोकामना बस इतनी थी कि कुछ बचे-न-बचे
किसी की आँख में बचा रहे थोड़ा-सा इंतजार
मेरी आँख में बचा रहे किसी के लिए थोड़ा-सा इंतजार
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