एहि भोटतंत्र की माया!
माया महाठगिनी बहुत पुरानी
कबहुं मुहँ पर मूति दैत हो
कबहुं चरन पखारी!
केहि विध दरसाऊँ
हमहि तोर परम हितकारी!
करहु लाल ऐसन कछु किरदानी लोगन थू-थू कहि जा के निंदा खूब बखानी!
जमा होई जाए लोगन भोटवालन तब
चरन पखारि चानस बनै कुछ
जेहि विध हितकारी तिरलोकी छवि जगत में लगे उरानी!
एहि भोटतंत्र की माया बहुत पुरानी साधो
माया बहुत पुरानी
राज परशासन लीला केरि तिरगुन फांस रखबारी
माया महाठगिनी हम जानी
बस जानी नहि सवधानी।
कबहुं मुहँ पर मूति देत हो
कबहुं चरन पखारी!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें