मैं लौट रहा हूँ मिथिला

मैं लौट रहा हूँ मिथिला
मिथिला को बताने
बताने कि मगध जिंदा है!
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इन दिनों खास मगध में हूँ
पूछता हूँ मगध से बार-बार
मैं कब नहीं था मगध में!

झकझोरता हूँ खुद को
मगध की बैखरी छायाओं को
झकझोरता हूँ परा को, 
पश्यंती को भी
पूछता हूँ मगध से बार-बार--
मैं कब नहीं था मगध में!

मगध कोई उत्तर नहीं देता
पूछता है सवाल
और मुँह फेर लेता है तत्काल
पूछता है कि उलाहनाओं को छोड़ो
मिथिला, मैथिली का हाल बताओ!

मैं एकदम भीतर से डर जाता हूँ 
डर  जाता हूँँ भारतवासी की तरह
डर  जाता हूँँ  कि मैं वह नहीं हूँ
जिस होने के भ्रम में जीता हूँ!

डर  जाता है मेरा भारतवासी मन कि
मगध सिर्फ छाया नहीं है
है उसमें प्राण बाकी
रिसता है उसके भी अंदर दर्द
जैसे दर्द मिथिला का, 
मैथीली का

मगध के प्राण में दर्द है
दर्द है तो विचार भी होगा!

दर्द और विचार तो वैसे ही होते हैं साथ
जैसे होते हैं साथ आग और धुआँ
मिथिला में हो, चाहे हो नालंदा में धुआँ

मिथिला का प्राण मिथ में बसा है अब तक
मगध जानता है कि कैसे और किस तरह
रौंदे हुए इतिहास में बचा है प्राण अब तक

हिलते हुए मगध ने कहा श्रीकांत!
जो अब तक कोई समझ नहीं पाया
भारतवासी की छाया 
हैसियत से बहुत लंबी हो गई है
उदयाचल! अस्ताचल!
जानती है पैर के नीचे दबाई गई जमीन है!
जानती है पैर के नीचे जमीन दबाई गई है!

तुम विचार की चिंता करते रहे!
विचार क्या करे कोई जब सवाल सामने हो
सवाल तो रोम-रोम में है श्रीकांत।

सवाल भारत जीता रहा
मिथ में, इतिहास में, मिथहास में
तो क्यों कुचला गया मगध या मिथिला!

तख्त हो या सलतनत पलटता जरूर है
सवाल हो या विचार उठता जरूर है श्रीकांत

मगध जिंदा है, और पूछ रहा है
मिथिला, मैथिली का हाल
मैं भारतवासी
मगध की जमीन पर
मगध को क्या जवाब दूँ!
क्या हाल बताऊँ मिथिला का!

मैं लौट रहा हूँ मिथिला
मिथिला को बताने
बताने कि मगध जिंदा है!
मगध जिंदा है अपने सवालों के साथ।

रिश्तों की रवायत

ये दूरियां
ये मजबूरियां
थथमार देती है
रिश्ते की नजाकत को
मार देती हैं!

अपना कौन, पराया क्या!
अपनों से अधिक पराया कोई क्या खाक होगा!

कभी-कभी अच्छा लगता है अपनों का परायापन
एवजी जिसके
परायों का अपनापन
ये कश्मकश ही शायद
रिश्तों की रवायत है!

ये दूरियां
ये मजबूरियां
थथमार देती है
रिश्ते की नजाकत को
मार देती हैं!