आखिर रही खोट कहाँ कयास में

वे खुशनसीबी पर चहकते रहे बेखौफ अपने खुश लिबास में
नई उदासी घुसती चली गई, उनके बहु सुरक्षित निवास में

उनको तो कोई इल्म नहीं, आखिर रही खोट कहाँ कयास में
लुटिया थी सो डूब गई, रहे मस्त, अखंडित आत्मविश्वास में

अंधा सफर कटा सूझ से, आँख ने साथ नहीं दिया उजास में
दूर से आया मेहमान जोड़कर इसे दिखाया उसने विकास में

हुई पाठ पढ़ाने की तो पूरी कोशिश रह गई कमी अभ्यास में
छात्र फेल हुए, जाने मास्टर क्या करते रहे अबकी क्लास में

अक्ल पर पत्थर पड़ी थी, चाय जो परोसी उनको गिलास में
सोचा बहुत झल-फला देंगे उनको भी बेतुके परिहास-हास में




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