खुद को जीना सिखलाया

खुद को जीना सिखलाया
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मैं ने अपने जख्मों को
अपने दुख पर हँसना सिखलाया

मैं ने अपने दुखों को
जख्मों पर मरहम बनना सिखलाया

इन दोनों ने मुझ को
मिलकर थोड़ा-सा जीना सिखलाया

मैं, मेरा दुख और मेरे जख्मों ने
हँसते-हँसते इस 'जीना' के साथ बिताया

पाला, पोसा बड़े जतन से
जख्मों को, दुख को, हँसने को
लगा वक्त पर खुद को जीना सिखलाया

 
मेरे मन को वर्ण-विपर्यय कुछ ऐसा भाया
खुद को पुकारो, तो दुख आता है
दुख को पुकारो, तो खुद आता है
दोनों ने मिलकर ही नाच नचाया