तर्जनी पर लगी, स्याही

फूल की खुशबू से मन जब भी मता जाता है
मुझे अध खिली डालियों का ख्याल आता है

मौसम खराब है जब चाँद यह बता जाता है
महबूब के रूठने पर हँसी का ख्याल आता है

सूरज नर्म निगाह से धरती को सता जाता है
फटे कंबल के बहत्तर छेद का ख्याल आता है

जो उपकार का एहसास कोई जता जाता है
नोर से भीगे तेरे आँचल का ख्याल आता है

अपने दिल को वह मेरे सामने रुला जाता है
तर्जनी पर लगी, स्याही का ख्याल आता है

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