बुझारत पर डाका पड़ा था



नहीं समझेंगे कि इस दिन क्या हुआ था
गाँव में हाँका और घर में डाका पड़ा था

चाँद था तारे भी थे, था सबकुछ मामूल
एक तहजीब थी जिस पर डाका पड़ा था

हुस्न के मय्यार की चिंता में हम मशगूल
इश्क था अकेला जिस पर डाका पड़ा था

सदरे हुकूमत खौफ के हालात से वाकिफ
जनतंत्र के रूह पर दिन में डाका पड़ा था

इबारत तो उस दिन ही लिख दी गई थी
रौशनाई पर! स्याही का, डाका पड़ा था

खंडहर तो कह नहीं सकता मगर जो था
अपनी सरजमीं जिस पर डाका पड़ा था

हंगामों की, सियासी जिद का असर था
असर था कि बुझारत पर डाका पड़ा था

यह हिंदुस्तान था नफरत में जलता हुआ
हिला मगर शांत हालाँकि डाका पड़ा था

कोई टिप्पणी नहीं: