कुछ हुस्न-ओ-इश्क की शरारत कुछ समाजी शराफत ने परेशान किया होगा
कुछ टूटे हुए ख्वाब कुछ दरपेश हकीकत ने इस तरह से लहुलुहान किया होगा
रूह में समाकर हँसता है जो हरा जख्म इस तरह से किसी हुक्मरान ने दिया होगा
ख्वाबों ख्वाहिशों की खाल दिखे जहाँ टंगी किसी ने मालिक के दालान को दिया होगा
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