सुर्खियाँ बनाते-बनाते सुर्खियों में बने रहने की जो तमन्ना
गैर-वाजिव नहीं तो जायज मान लेनी की वजह कोई नहीं
तुम्हारे लफ्जों के लपेटे में आ जाना आदमी रहे कितना चौकन्ना
कवियों पत्रकारों पर अब भी ऐतबार, हाँ वजह कोई नहीं
तुम भी अब रौनक-ए-महफिल में शामिल और हाथ का झुनझुना
कम-अक्ल हम इतने ज्यादा, सिवा इसके तेरी लियाकत कोई नहीं
लफ्जो-इल्म ही बेआबरू, अब अल्फाज पर यकीन कितना
तुम्हारे किरदार का ये हस्र होना दुखद और शिकायत कोई नहीं
कलम की अकबरियत की क्या बात करें, है सब धिन-धिन्ना
इस जगह से खुद को दिखा रहे, है हिंदुस्तानियत अब कोई नहीं
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