चरैवेति - चलते रहो

चलना कठिन है। बहना आसान है। बहना प्रकृति है। चलना संस्कृति है। चलने और बहने में बहुत बड़ा अंतर होता है। रुपया पैसा न चले तो मुश्किल है लेकिन, बह जाये तो मुश्किल है। क्या हाल है, पूछने पर लोग जवाब देते है; चल रहा है। कोई नहीं कहता बह रहा है। लछमी चंचल होती है। बहुत तेज चलती है। मनुष्य उसके पीछे-पीछे चलता है। चलना प्रकृति की शक्ति, गति, और स्थिति के विरुद्ध मनुष्य की जिद, युक्ति, शक्ति और आंतरिक गति से संभव होता है। जिंदा आदमी बहता नहीं, चलता है। मुर्दा चलता नहीं, बहता है। पुरखों ने कहा चरैवेति चलते रहो। जिंदा बचना है, तो चलते रहो। चलना क्या है! फिर कभी।

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