प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
हमारे समय में
जीवन के कई अच्छे प्रसंग
डरावने हो गये हैं, जैसे कि दोस्ती
डरता मैं भी हूँ, कम नहीं बहुत
लेकिन इस डर के बाहर
शायद थोड़ी-सी खुली हवा हो
थोड़ी-सी आजाद रौशनी
थोड़ी-सी जमीन बस थोड़ी-सी
इस उम्मीद से डर के बाहर
थोड़ी-सी खुली हवा,
थोड़ी-सी आजाद रौशनी,
थोड़ी-सी जमीन, बस थोड़ी-सी
के लिए आकाश में भटकता रहता हूँ
उम्मीद में भटकन
और भटकन में उम्मीद
हमारे समय को समझने की
एक छोटी-सी खिड़की है
बहुत दिनों से बंद
इस खिड़की को खोलने की
कोशिश को एक गुनाह की तरह
मैं अपने खाता में दर्ज करता हूँ
और इस तरह अपने समय की
उम्मीद को बचाने की कोशिश में
चुटकी भर लिखने की हिम्मत करता हूँ
बस चुटकी भर, सिंदूर की तरह
इस तरह उम्मीद से
डर के बाहर खिड़की से झाँकता हूँ ▬▬
देखो न प्रिय, यह जानते हुए कि
झाँकना देखना नहीं है,
मैं देहरी के अंदर बने रहकर
खिड़की से समय में झाँकता हूँ
हमारे समय में
जीवन के कई अच्छे प्रसंग
डरावने हो गये हैं, जैसे कि दोस्ती
डरता मैं भी हूँ, कम नहीं बहुत
लेकिन इस डर के बाहर
शायद थोड़ी-सी खुली हवा हो
थोड़ी-सी आजाद रौशनी
थोड़ी-सी जमीन बस थोड़ी-सी
इस उम्मीद से डर के बाहर
थोड़ी-सी खुली हवा,
थोड़ी-सी आजाद रौशनी,
थोड़ी-सी जमीन, बस थोड़ी-सी
के लिए आकाश में भटकता रहता हूँ
उम्मीद में भटकन
और भटकन में उम्मीद
हमारे समय को समझने की
एक छोटी-सी खिड़की है
बहुत दिनों से बंद
इस खिड़की को खोलने की
कोशिश को एक गुनाह की तरह
मैं अपने खाता में दर्ज करता हूँ
और इस तरह अपने समय की
उम्मीद को बचाने की कोशिश में
चुटकी भर लिखने की हिम्मत करता हूँ
बस चुटकी भर, सिंदूर की तरह
इस तरह उम्मीद से
डर के बाहर खिड़की से झाँकता हूँ ▬▬
देखो न प्रिय, यह जानते हुए कि
झाँकना देखना नहीं है,
मैं देहरी के अंदर बने रहकर
खिड़की से समय में झाँकता हूँ
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