अगर जो कभी काँटा को फूल का सलाम नहीं आता
कैसे जी सकता कलम नहीं होती, कलाम नहीं आता
मुहब्बत के आकाश में रंगों को बिखरना नहीं आता
लंबी उम्र में अगर कभी दो पल जी लेना नहीं आता
वक्ती खुशियों में मन को अगर घबराना नहीं आता
ख्वाबों को अपने सिलसिले में सिमटना नहीं आता
अँधेरे में जो कलियों को चटकना अगर नहीं आता
रौशनी की आवाज को थरथराना अगर नहीं आता
हाँ मुड़ कर कोहराम को देखना अगर नहीं आता
जो सामने आनेवाले मंजर को परखना नहीं आता
अपनी खामोशियों में पिघलना अगर नहीं आता
जो बोलती भौहों को बिचकना अगर नहीं आता
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अगर नहीं आता
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