हम से क्या अब पूछ रहे हो!
हम तो लफ्जों के खेल में हैं मशगूल कवि! नहीं। हम ठहरे लफ्फाज
कंठ में नहीं अपनी कोई आवाज
पूछो उससे
जिसके हाथ अभी तक
कुछ ना आया, कुछ ना आया
बिन बोले बतलायेगा
क्या खोया है उसने और
अब तक क्या है पाया
चारों खम्भा खामोश खड़ा अंतःकरण में ताकझाँक कर
किसी तरह बोला चौथा
बोला चीख-चीखकर
चौपाया है, चौपाया है
मानो या ना मानो
चौपाया है, चौपाया है
तंत्र हमारा चौपाया है!
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