ये तेरी मुस्कान! रहने दे, है बस इमदाद के बराबर
मुहब्बत कोई क्या खाक करेगा फसाद के बराबर
वो बात भी करता नहीं दिल-ए-आजाद के बराबर
कह दिया और कह नहीं सकता उस्ताद के बराबर
ये तेरी मुस्कान! रहने दे, है बस इमदाद के बराबर
और थे, जिनके लिए इंक्लाब जिंदाबाद के बराबर
न कुँवर सिंह कोई, न जिला, शाहाबाद के बराबर
है जंग ही है मुराद तो लानत है मुर्दाबाद के बराबर
ये तेरी मुस्कान! रहने दे, है बस इमदाद के बराबर
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