सच, उस तरह से नहीं

सच, उस तरह से नहीं
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उस तरह से
मेरे ख्यालों में नहीं
उभरती हो तुम
जिस तरह से
आसमान में
उगा करता है चाँद
मैं तो समझता रहा सदा कि
जिस कठौते में होती है गंगा
सब से पहले उसमें
उगता है चाँद
उगता है और
आसमान में छा जाता है चाँद
फिर भी उस तरह से
मेरे खयालों में नहीं
उभरती हो तुम

किसी सुंदरता को तुम में नहीं
सुंदरता में तुम्हें तलाशता हूँ

असल में इस दरम्यान मैं
कठौते चाँद गंगा सुंदरता
और तुम में खुद को तलाशता हूँ
और इस तरह से
मन गंगा तन कठौता
खयाल आसमान हो जाता है
और तुम बुझे हुए मन को
हुलसा जाती हो
और बस यही कि
तुम मेरे ख्यालों से
बाहर मचल जाती हो

सच, उस तरह से
मेरे ख्यालों में नहीं
उभरती हो तुम
जिस तरह से
आसमान में
उगा करता है चाँद

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