यह सब देखकर भी मुझ को कोई परेशानी नहीं है।
कैसे कह दूँ कि खून मेरे जिस्म का अब पानी नहीं है!
चलता हूँ सम्हलकर कौन कहता निगहबानी नहीं है!
फिर भी सफर जारी है कि कैसे कह दूँ मेहरबानी नहीं है!
मुफलिसी में भी तेरी ये हँसी तेरा भी कोई सानी नहीं है।
ये शरारत है दिल कहता है कि ये तेरी कोई नादानी नहीं है।
तेरी आवाज में है जादू कायम नहीं अब कोई रवानी नहीं है।
सब सह लेता है ये इसके हिस्से में कोई जवानी नहीं है।
करिश्मा रोज मिलता हूँ पर सूरत कोई पहचानी नहीं है।
हर कदम पर पहरेदारी कौन कहता कि निगरानी नहीं है।
ये रवैया ये फैसला देख कह दे अदालत कोई दीवानी नहीं है!
जो न मुतासिर खुलकर कह दे वह कोई हिंदुस्तानी नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें