गुनाह बेपरदा होगा चमन मुस्कुरायेगा

गुनाह बेपरदा होगा
चमन मुस्कुरायेगा
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दिखाकर ख्व़ाब जो लूट ले चमन
बेपरवाह कि
कैसे मुल्कियों में कायम रहे अमन
मुल्क का नहीं वह खैरख्वाह
उसका साया भी  पुरगुनाह

वह मेरा रहनुमा नहीं, हरगिज़ नहीं

लोभ लालच का फंदा
सुलह या सौगात नहीं

वो लूटते रहें वैखौफ
यह तो खुशनुमा मंजर नहीं है
जो दिखता है बाहर
यकीनन वह अंदर नहीं है
अल्फाज़ हैं भटके हुए-से
नीयत भी साफ नहीं है

वह दिन भी आयेगा
गुनाह बेपरदा होगा
चमन मुस्कुरायेगा