यों ही! दादी से सुनी कहानी में नमक मिर्च

एक आदमी की दो बेटियां थी। गाँव देहात की बात है। देहांत नहीं, देहात! देहात समझते हैं न! दोनों ने लव मैरेज कर लिया। एक का पति किसान था और एक का मिट्टी के बर्तन बनाने के काम में तरक्की कर रहा था। एक दिन किसान ने दोनों बेटियों के घर जाकर हालचाल लेने पहुंचा।
पहले किसान के घर। बेटी ने कहा बाबा इस बार सूखा पड़ जायेगा। भगवान से कहिए न कि पानी दे। आदमी ने सोचा, उसकी बेटी कितनी भोली है! भगवान ने भला उसकी बात कब सुनी है जो आज सुनेगा! फिर भी कह दिया हे भगवान पानी दो।
दूसरी बेटी के यहाँ निकल गया। अचरज कि आसमान में बादल के टुकड़े तैरने लगे। भीगने का डर था। तब तक दूसरी बेटी के घर पहुंच गया था। बेटी बादल देख कर परेशान! उसने कहा बाबा भगवान से कहो अभी पानी नहीं दे। किसान परेशान हो गया। फिर सोचा कोई उसके कहने से बादल थोरे न भगवान ने भेज दिया है। बेटी की परेशानी देख उसने कह दिया, हे भगवान पानी मत दो।
अब आदमी अपने घर के लिए निकल पड़ा। रास्ते पर भगवान मिल गये। भगवान ने रोका। भगवान ने कहा, अभी कहा पानी दो। फिर कहा पानी मत दो। अब मैं क्या करूं!  तुम ने संकट में डाल दिया है। अब इस संकट से तुम ही निकालो।
आदमी छगुनता में पड़ गया। संकट में आदमी भगवान के पास जाता है।यहाँ तो मामला उलटा है! उसने कहा, कितनी बार तुम्हे याद किया तब तो कभी झांकने भी नहीं आये! अब संकट में आये हो! मैं कुछ नहीं कर सकता। जो मन में आये करो। भगवान ने कहा,  मन की बात कहूँ । मैं कुछ भी करूँ कोई-न-कोई  दुखी हो ही जाता है। मैं तंग आ गया हूँ! अब मैं ने छोड़ दिया है लोगों की सुनना। ये आदमी लोग बहुत स्वार्थी होते हैं।
दादी तो अब रही नहीं। हैं तो बुद्ध भी नहीं। मगर बुद्ध याद आ गये। महात्मा बुद्ध ने कहा, दुख है। दुख का कारण है। दुख का कारण जन्म है। जन्म  बहुत सारे दुखों का कारण है। जन्म से जाति है। जन्म से मुलकियत है। जन्म से मलकियत है, मजहब है। जन्म से गैर बराबरी है। है, जन्म है, दुख का कारण।

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