प्रेम रिश्ता टूटन जुड़न

प्रेम रिश्ता टूटन जुड़न
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रिश्ता कोई हो, रिश्तों का मूल आधार होता है प्रेम। प्रेम के कई प्रकार होते हैं, कई स्तर होते हैं। कोई ऐसा रिश्ता नहीं होता है जिसमें टूटन की हद तक का तनाव न आता हो, कई बार तो टूट भी जाते हैं। फिर जुड़ जाते हैं। इस टूटन से बचने और फिर जुड़ने की प्रक्रिया के बारे में संतभाव कवियों ने सहज ममता से हिदायत दी है। ये हिदायतें प्रेम के प्रकार और स्तर पर भी बहुत कुछ निर्भर और कारगर होता है। चूँकि सहज है, इसलिए बस याद दिलाने के लिए –
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे , जुरे गाँठ परी जाय।
और आगे —
रूठे सुजन मनाइए , जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।
कबीर तो कहते हैं —
सोना सज्जन साधु जन, टूटि जुरै सौ बार।
अब हमारे लिए यह कितना व्यावहारिक है, यह तो बहुत हद तक हम पर निर्भर है। 

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