ना-उम्मीद सच और ना-सच की उम्मीदवारी
सच से
नहीं आती उम्मीद की कोई आवाज
ना-सच
में ही झलकता है उम्मीद का रंग
विमोहन
की किस दशा से गुजर रहा समय!
घड़ी को देखता हूँ, गौर से,
बहुत गौर से
घड़ी तो वैसी-की-वैसी है
समय मुझे आकर्षक क्यों नहीं
लगता इन दिनों?
अपनी तरफ जरा भी खींचता नहीं
समय
समय को खींचते रहना पड़ता है।
स्ट्रेचर पर लादे कौन ले जा रहा
समय को
दुर्घटना-ग्रस्त समय की हिफाजत
में कौन लगा है
कहाँ है वह अस्पताल जहाँ समय का
होता है इलाज
अकुलाता है प्राण आखिर बचेगा तो
समय!
मेरे गुजर जाने के बाद बचेगा थोड़ा-सा
समय
जैसे बचा था पिता के गुजर जाने
के बाद थोड़ा-सा!
बहुत थोड़ा ही बचा था, मगर था
बचा हुआ।
थोड़े-से, बहुत थोड़े-से बचे
समय को फैलाकर
बचा रहा बाकी समय जो अब दुर्घटना-ग्रस्त
है
समझ नहीं पा रहा
दुर्घटना-ग्रस्त हो गया है
अति वृद्ध हो गया है, या जर्जर
विकलांग ही रहा है या अब हो गया
है अपाहिज!
सोचता हूँ, होगी या नहीं होगी
अगली बारी!
ना-उम्मीद सच और ना-सच की उम्मीदवारी!
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