चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी
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प्रार्थना
है कि धरती का कोलाहल
चाँद पर न
पहुँचे यहाँ का हलाहल
धरती की
छाया को न ओढ़ा करे इस तरह अब।
चाँद पूछे
तो बस बता देना –
झुलसी हुई रोटी
माँ को सताने के लिए कहा था
सच है –
मुँह के टेढ़ा होने की बात भी कही थी
मगर यह सब तो
माँ से मामा का उलाहना भर है
इसका बुरा न माने चाँद!
सुना है चाँद के पास है
ढेर सारा – अमृत!
हो सके तो नहीं ज्यादा तो थोड़ा भी
मिल जाये
अमृत
धरती के
रहनिहारों के लिए
थोड़ा भी
बहुत है।
न मिले
अमृत तो भी कोई बात नहीं
बस पता न
चले किसी तरह चाँद को कि
जिन्हें
छाछ भी नसीब नहीं
उनके लिए
अमृत की तलाश में है धरती!
कम-से-कम अभी
तो मुलतवी रखना
धरती का अंदरूनी
मामला वहाँ उठाने से
वहाँ बस यही
संदेशा देना –
चाँद मामा की जय!
भारत माता की जय!
जय-जय सच्चा मामा, जय-जय धरती माता!
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