गुरु और ज्ञान
संतों ने कहा है --- बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता है। गुरुओं के बारे में नहीं कह सकता, लेकिन उस समय के संतों के प्रति खासकर उनके कहे के प्रति मेरी बहुत श्रद्धा रही है, भरोसा भी। लेकिन, गुरु से ज्ञान मिलनेवाली बात पर से मेरा भरोसा जा रहा है। अभी पूरी तरह चला नहीं गया है, लेकिन प्रस्थान चतुष्टय की श्रेणी में पहुँच चुका है। मेरा अनुभव तो यही कहता है कि बिना चेला के गुरु को ज्ञान नहीं मिलता है। आखिर चेला ही तो गुरु में गुरु के होने का दंभ भरता है। चेला ही तो गुरु को गुरुडम से मंडित करता है। जिंदगी भर गुरु की तलाश करता रहा। इस तलाश में चेलों के लिए कोई जगह तो थी ही नहीं। हाय, यह जिंदगी तो बेकार गँवा दी। किस दुविधा में फँसा रह गया! मुझ से न किसी ने गुड़ माँगा, न मैंने किसी को ढेला दिया। कोई चेला मिल गया होता तो, गुरु बनने के इस माकूल समय का लाभ मिल जाता। अब पछताये होता क्या? गुरु के चक्कर में ही फँसा रहा, चेलों से किया न हेत! जो हो, निष्कपट भाव से कह रहा हूँ, उस समय के संतों के कहे पर भरोसा रखना ही होगा, खासकर तब जब गुरु के मिल जाने की संभावना सामने प्रकट है।
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