अब वही कैफ़ियत सभी की है
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मैं क्यों जो इतना परेशान-सा रहता हूँ ––
वह
कौन-सी कसक है,
जिसकी
तबाही के सबूत दिख जाते हैं
जिसकी
मातहती में
मेरे
मिजाज का लहू निकलता रहता है
वक्त,
बेवक्त सूरत बनी रहती है रोनी
सब
कुछ तो ठीक है, सब कुछ तो ठीक है!
जो
है, वही ठीक है, ठीक और क्या होता है!
कहते
हैं चाहनेवाले।
अगरचे जानता हूँ
अपने
निखालिस हयात में वे भी
कोई
कम नहीं बिसूरते रहते हैं!
जो
है, वही ठीक है, ठीक और क्या होता है!
अब
वही कैफियत सभी की है।
(शीर्षक साभार : फैज़ अहमद फैज़)
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