साहित्य
की रसोई
वह क्या चीज थी, जिसके पीछे एक उम्र गँवा दी हमने!
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पहले रसोई। बड़े-बड़े होटलों में भोजन कक्ष जितने
करीने से सजा होता है, बातचीत जितने सलीके से होती है; ऐसा ही व्यवस्थित सबकुछ
उसकी रसोई में नहीं होता है। कहते हैं, जो ग्राहक भोजन कक्ष को पार कर रसोई तक
पहुँच जाता है, उसे भोजन कक्ष के ‘करीने और सलीके’ पर भरोसा जाता रहता है, कई बार
जायका भी। असल में हर चीज का एक नेपथ्य होता है –– जीवन, प्रकृति, राजनीति,
साहित्य, नाटक, आदि सब का जादू नेपथ्य में होता है! जादू का ‘जादू’ भी नेपथ्य में
ही रहा करता है। नेपथ्य दिखलाने के लिए नहीं होता, दिखलाने की तैयारी के लिए होता
है। एक दिन एक सज्जन किसी विषय पर सार्वजनिक बातचीत में मुझ से अपनी तर्कहीनता से
उलझ रहे थे। अंततः मैंने हार मान ली, जान छूटी। मन दुखी था। मन उनका भी खुश नहीं
था। बाद के किसी ईमानदार क्षण के एकांत में उन्होंने मुझ से कहा। दादा आप सही कह
रहे थे। मेरा कमान पीछे था। मैं आप की बात तब मान लेता तो प्रबंधन को वह बात नहीं
मनवा पाता। यहाँ मैं जो भी कहता, ऊपर तुरंत पहुँच जाता। मेरे पीछे आदमी लगा रहता
है। मुझे हिडन कमांड को फॉलो करना पड़ता है। नाटक में जैसा स्क्रिप्ट होता है, या
पीछे से प्रॉम्पट मिलता है, वैसा ही करना पड़ता है। बुरा न मानियेगा। आपकी बात को
प्रबंधन ने मान लिया है, मैं भी यही चाहता था –– हिडन कमांड तो नेपथ्य में रहता
है। दर्शक दीर्घा में बैठ कर नाटक देखने और नेपथ्य या ग्रीन रूम के पर्यवेक्षण में
अलग-अलग तरह का मजा है। आदमी को दोनों का मजा चाहिए। कुछ बड़े या आत्मीय लोगों को
मंच पर प्रदर्शन के बाद, नेपथ्य या ग्रीन रूम के मुयाने का भी मौका दिया जाता है –– ताकि दर्शक के मन में उनके बड़े होने और अपने
आत्मीय होने का झूठा सच्चा एहसास करवाया जा सके, इस एहसास जागरण के भी अपने लाभ
हैं, व्यावसायिक भी और पेशागत भी!
राजनीति की बात! इसे छोड़िये। साहित्य की बात करते
हैं, न! कुछ पाठक, मेरा अनुभव हिंदी पाठक तक सीमित है, साहित्य के नेपथ्य को घूम-फिरके
देखने के मजा की मनोहारी गिरफ्त में इस कदर आ जाते हैं कि उनके लिए रचना का जादू
खो जाता है। वे नेपथ्य से अपनी रिपोर्टिंग करते रहते हैं –– इस रिपोर्टिंग के वे
साहित्य या साहित्य की आलोचना मानते और मनवाते रहते हैं। कुछ लोग, कुछ दिन तक इसे
मान भी देते हैं। बाद में, बहुत बाद में उन्हें सवाल बहुत परेशान करने लगते हैं ––
वह क्या चीज थी, जिसके पीछे एक उम्र गँवा दी हमने!
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