डर का रुमाल
निमाई ने कई लोगों से सामाजिक संपर्क करने की कोशिश की। मदद माँगी। टेका
लक्षण बताया। पाँच-छ लोगों ने ध्यान से सुना। उनकी मुख मुद्रा गंभीर थी। कहा किसी
ने कुछ नहीं। कोई आँख नीची करके ,चला गया। कोई उड़ती नजर डालकर। एक बात उन में
कॉमन थी। गौर से देखने पर पता चला। चाल किसी की सीधी नहीं थी। क्या ये लोग भी
कंठरोध के शिकार हैं। नहीं कोई और बात होगी। एक बात और थी कॉमन। गौर करने लायक।
पूरी बात सुनकर उन में से सभी ने जेब से रुमाल निकाला। रुमाल के साइज और कलर अलग-अलग
तरह के थे। निमाई ने गौर किया। मुँह पोंछते हुए निकले। उस रुमाल में कोई बात हो
सकती है। कोई रहस्य। क्या डर का रुमाल। डर का रुमाल! डरता हर कोई है। हमलावर भी।
शिकार भी। डर हवा है। हवा हर किसी को लगती है। निमाई को याद है। कुछ साल पहले की
बात। गली में फेरीवाला या था। वह बहुत जोर दे रहा था। चादर खरीदने पर। उसे दुख था।
चादर बिक नहीं रही थी। धड़ल्ले से। कीमत ज्यादा थी। चुकाने की हैसियत नहीं थी। पत्नी
ने एक दिन बताया। घर के पास तालाब किनारे के पेड़ का इशारा किया। वहाँ जल चढ़ाने
जाना होता था। असल में पानी डालने जाता था। पत्नी ने भैरवी आँख तरेरी थी। पानी
डालने नहीं। जल डालने। तब से पानी डालना बंद। जल चढ़ाना शुरू। वहाँ वह फेरीवाला।
अपनी चादर को फाड़ रहा था। फाड़कर रुमाल बनाया। कई साइज का। एक रुमाल पेड़ की जड़
की जड़ के पास गड़े पत्थर पर लपेट दिया। यह बात बहुत तेजी से फैल गई। वाइरल हो गई।
इसके साथ ही लिपटकर डर भी फैलता गया। रुमाल! इसके साथ ही रुमाल की माँग
काफी बढ़ गई। फेरीवाला जिसकी तरफ देखता, वही हाथ बढ़ाकर चमत्कारी रुमाल खरीद लेता।
पत्नी ने बताया था। लोग डर के मारे रुमाल खरीद रहे हैं। डर का रुमाल।
निमाई ने भी एक रुमाल खरीदी। पत्नी को दिखाया तो उसने अपना रुमाल दिखाया। यह
रुमाल बहुत दिन पहले माँ से मिली थी। शादी के ही समय। माँ की हिदायत। सम्हालकर
रखना। दोनों को मिलाया। हू-ब-हू एक।
-
काका! ओ काका!
दूसरी बार आवाज सुनकर निमाई ने गर्दन घुमाई। गौर से देखा। उस स्त्री के हाथ
में रुमाल है। उसने भी अपना रुमाल निकाला। ऐसे, जैसे डर से डर मिल रहा हो। निमाई कभी
मैथ्स का टूसन दिया करता था। एक बार एक उद्दंड छात्र ने पूछा। मानस इंटू मानस पल्स
होता है। माइनस टू पल्स माइनस टू बराबर पल्स फोर क्यों नहीं होता है! निमाई का सर चकरा
गया। मैथ्स का टूसन बंद। टूसन क्या दे! जिंदगी का हिसाब गड़बड़ा गया। डर से डर मिलकर
द्विगुणित हो गया।
- - आप को टोका।
बुरा तो नहीं लगा! मैं आप को नहीं जानती। आप भी मुझे नहीं जानते। लेकिन आप जो उधर बात कर रहे
थे। सुना। मेरा भी कंठरोध है। देखा नहीं। पूरी आत्मा का जोर लगाकर मैं ने पुकारा।
आप सुन नहीं पाया। अभी सुन रहा है आप! मैं टेका को नहीं जानती। मैं खुद एक
टेका हूँ। मेरे आसपास और कई टेका हैं। अच्छा अभी चलती हूँ। फिर मिलूँगी।
टेका ना टेकी! मैं उससे कुछ कहना चाहता था। बूढ़ी आत्मा का पूरा जोर लगाकर भी गले से खाली
फुस्स-फुस्स हवा ही निकली। शब्द नहीं। बोल नहीं पाया। कई बार अवसर ऐसे ही गँवाया
है। क्या समय पर सुन नहीं पाता। कुछ का कुछ सुन लेता हूँ! श्रवणभ्रंश के लक्षण हैं।
तभी याद आया। परसो ही, कान पर बैठी मक्खी को रुमाल से उड़ाने की कोशिश की थी।
रुमाल को जेब में रख लिया। फिर कोई मिल जाये! क्या पता? बात आगे बढ़ रही
है। क्या पता?
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