रिपोर्ट
(कहानी)
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मिस्टर गोयल बोलने के लिए खड़ा हुए तो सभा में गहरी खामोशी छा गयी। मैनजमेंट की उच्च स्तरीय मीटिंगों में वैसे भी सबसे मुखर खामोशी होती है। मैनजमेंट के निचले पायदान पर संघर्ष कर रहे अधिकारियों में कानाफूसी का सिलसिला थम चुका था। एक तेज उत्सुकता सब के मन में थी। इस सभा में मिस्टर गोयल के अलावा और बारह लोग थे। मुख्य रूप से गोयल को ही बोलना था। मिडटर्म एप्राइजल मिटिंग यह नहीं थी। लेकिन इसके मिडटर्म एप्राइजल में बदल जाने की पुरजोर स्थितियाँ थी। सभी महत्त्वपूर्ण लोग आ चुके थे। इनमें चार तो बहुत ही प्रभावशाली थे। जरूरत पड़ने पर इस तरह की किसी मिटिंग के निष्कर्षों को कभी भी अपने अनुकूल कर लेने में इन्हें महारत हासिल है। मिटिंग के तनावों की दिशा को इनके दबावों से बदल जाने पर सभा का काम उनके विचारों को जायज और सुग्राह्य बनाने के उपायों के बारे में विचार करना भर रह जाता है। किसी स्वतंत्र विचार को सामने लाना बाकी सदस्यों की सीमा के बाहर की बात है। इन लोगों के विचार की फाँक से अपने कुछ सुझावों को निकाल ले जाने की सहूलियत रहती है। ऐसे अवसर आते ही रहते हैं। बिना किसी को आहत किये ऐसे अवसरों का उपयोग करनेवाले को मैनेजमेंट की टीम में आगे बढ़ने का रास्ता मिलता है। एमसी यानी मैनजमेंट कमिटी के अदब को जानना और अपने हिसाब से बरतना सदस्यों की योग्यता की पहली सीढ़ी है। मिस्टर गोयल पिछले कई अवसरों पर अपनी योग्यता प्रमाणित कर चुके हैं। आज उनके लिए एक कठिन घड़ी है। आज उन्हें मीटिंग में जाँच रिपोर्ट पेश करनी है।
मिस्टर गोयल ने बोलना शुरू किया तो पहले वे खुद थोड़ा घबराये हुए थे। लेकिन जल्दी ही वे सम्हल गये। उन्होंने बिना किसी भूमिका के बोलना शुरू किया। उन्होंने डॉयस पर बैठे मिस्टर दुरानी की ओर इजाजत माँगने की भंगिमा में देखकर कहना शुरू किया, ‘मैं अपनी बात शुरू करने के पहले आप से अनुरोध करूँ कि मेरी इस रिपोर्ट में ऐसी कुछ बातें हो सकती हैं, जिन पर आप असहमत या क्षणिक रूप से उत्तेजित हो जायें। लेकिन मैं आप से प्रार्थना करूँगा कि हर हाल में आप पहले रिपोर्ट को पूरी तौर पर सुन लें। मुझ से सवाल करें। सफाई माँगें। इतना ही नहीं, हो सकता है कि कुछ सवाल आपको खुद से भी पूछने की जरूरत पड़ सकती है। मेरी गुजारिश है कि यदि आप ऐसी कोई जरूरत महसूस करते हैं तो उसे नजरअंदाज न करें। इस रिपोर्ट को धारदार बनाने में और कनविंसिंग बनाने के साथ ही आगे होनेवाली कार्रवाइयों में इसके दस्तावेजी महत्त्व को बढ़ाने में अपना योगदान करें। लेकिन मेरी निष्ठा पर रंच मात्र भी संदेह न करें।' मेज पर रखे मिनरल वाटर के बोतल से पानी ढालते हुए, एक उड़ती नजर उन्होंने सदस्यों पर दौड़ाई। ‘आपके ध्यान में यह बात होगी कि घटना के एक दिन पहले एडमिनिस्ट्रेटिव कमिटी की मिटिंग हुई थी। उस मिटिंग में मिस्टर लोनावाला ने बहुत ही जोरदार और प्रेरक भाषण किया था।’
लोनावाला का नाम आते ही मिस्टर रुँगटा ने हस्तक्षेप किया, ‘मिस्टर गोयल आप अपनी रिपोर्ट पढ़िये। यह एमसी मिटिंग है, सत्य नारायण कथा का आयोजन नहीं है। आप जो कहना चाहते हैं, यह मिटिंग उसे सुनना नहीं चाहती है। हमें रिजल्ट चाहिए। रिजल्ट।’ अपने हस्तक्षेप पर किसी दूसरे सदस्य की कोई प्रतिक्रिया न होने पर मिस्टर रुँगटा की आवाज धीरे-धीरे मंद होती गई और वे अपनी सीट पर बैठ गये। जैसे माल लदा हुआ ट्रक का टायर हवा निकलने पर धीरे-धीरे बैठ जाता है। मिस्टर गोयल प्रबंध दक्षता में अपने वाक-चातुर्य का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। .ह तो हर कोई मानता है कि मिस्टर गोयल कुशल वक्ता हैं। अब यह कहने की तो जरूरत नहीं है कि अपने विरोधी स्वर को गला लगाते हुए उसका दम घोंटने में कुशल वक्ता माहिर होता है।
यह पहली बिल्ली है। इसे मारना बहुत जरूरी है। मिस्टर गोयल ने मन-ही-मन सोचा। बड़े शांत चित्त से दुरानी की तरफ नजर घुमाकर उन्होंने कहना शुरू किया, ‘मैं जानता हूँ यह एमसी मिटिंग है। टीवी चैनल पर चलनेवाला डिस्कशन्स नहीं। इसलिए फिर गुजारिश करता हूँ कि धैर्य से सुनने की कृपा करें। बिना सुने किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दबाजी न करें। कोई घटना जब भाषा में बयान की जाती है, वह कहानी लगने लगती है। महाभारत आज कहानी लगती है, क्या पता यह एक समय की सच्ची घटना ही हो। लोग इसे घटना ही मानते हैं। जो घटना भाषा में बयान होकर भी कहानी नहीं बन पाती है या बनने से परहेज करती है वह हमें सबक सिखाने में कामयाब नहीं होती है। आप जानते हैं कि मुझ से इसकी जाँच करने के लिए जो कहा गया, उसका मुख्य उद्देश्य ही सबक है। महानुभावों एक बात शुरू में ही साफ कर दूँ, जो आप सुनना नहीं चाहते वह मैं भी कहना नहीं चाहता हूँ। किंतु कहना मेरी मजबूरी है, सुनना आपकी मजबूरी। हम मिलकर इस मजबूरी से बाहर निकलने का प्रयास कर सकते हैं। एक बात और, सत्य नारायण कथा का आयोजन यह न भी हो तो भी सत्य कथन का आयोजन जरूर है। जहाँ तक रिजल्ट की बात है तो वह तो आप देख ही रहे हैं! मैं उम्मीद कर सकता हूँ कि आप में सत्य को सुनने और समझने का साहस है। इस काम के लिए ही एमसी को साहस की जरूरत होती है।’ इतना कहकर मिस्टर गोयल कुछ क्षण के लिए चुप हो गये। सभा सन्नाटा को सह नहीं पाई। सन्नाटा को तोड़ने का साहस भी कोई नहीं कर पा रहा था। चेयरमेन ने चुप्पी तोड़ी, ‘मिस्टर गोयल प्लीज केरी ऑन ... आप अपनी रिपोर्ट रखें।’
वहाँ चार आदमी होते है, वहाँ कम-से-कम पाँच गुट का बन जाना हमारा समय का सच है। जो बाहर से एक साथ दिखते हैं, वे भीतर से एक साथ नहीं होते है। लोनावला का नाम आने पर रुँगटा का बीच में ही चिल्ला पड़ना इसी का नतीजा था। लोनावाला और रुँगटा के रिश्तों में एक अंदरूनी समझ थी। इस समझ का तकाजा था कि उनके रहते लोनावाला पर कोई आँच न आये, खासकर जब पहले ही इस बात की आशंका हो। गोयल की हैसियत नौकर से ज्यादा नहीं थी, लेकिन मालिकों का काम उनके बिना नहीं चलता था। एक बार वे कंपनी को छोड़कर चले गये थे। बीच में ही कंपनी की नैया डगमगाने लगी थी। बहुत मुश्किल से उन्हें फिर से वापस बुलाया जा सका था, और पहले की तुलना में अधिक सम्मान तथा सुविधाओं के आश्वासन के साथ। गोयल की पुलिस प्रशासन में गहरी पैठ थी। सभी राजनीतिक दलों के महत्त्वपूर्ण लोगों से उनका लगाव था। उनके कई मित्र मीडिया में प्रभावशाली जगहों पर थे। सरकारी स्तर पर होनेवाली गतिविधियों की ही नहीं, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की जरूरतों, परेशानियों और इच्छाओं की जानकारी उन्हें रहती थी। उनके समाधान का रास्ता भी उन्हें अमूमन मालूम रहता था। गहरी सूझ-बूझवाले गोयल के संपर्क सूत्र उनकी योग्यता और अपरिहार्यता को एक साथ कई आयाम से जोड़ देते थे। यह तो उनके संपर्क का ही कमाल था कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद लोनावाला अपने घर में बैठकर आराम फरमा रहे थे। लेकिन कब तक! कानून कब तक खामोश रह सकता है। हुआ यह था कि कारखाना में चारों तरफ अराजकता फैली हुई थी। मजदूरों में अशांति थी। युनियन नेताओं के बार-बार के अनुरोध के बावजूद मैनेजमेंट कमिटी समय पर उनके पीएफ आदि का पैसा नहीं जमा करवा रही थी। उनके मिल के कई बीमार मजदूर वहाँ से वापस भेज दिये गये थे। कुछ दिनों तक मजदूरों को इस बात का पता ही नहीं था कि उनका पैसा जमा नहीं हो रहा है। पता भी कैसे चलता। उन्हें थोड़ी बहुत सुविधा वहाँ मिल जाती थी। अब डाक्टर जो बोलें बीमार को तो वही सुनना पड़ता है। यह काम भीतर ही भीतर हो रहा था। श्रम कल्याण के नये डायरेक्टर के आने के बाद यह भीतरी बात बाहर आ गई। जब बात खुलती है तो खुलती ही चली जाती है।
मिस्टर गोयल ने बोलना जारी रखा। ‘हाँ, तो मैं एडमिनिस्ट्रेटिव कमिटी की बात कर रहा था। अब, यह कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे मामलों में मालिकान की इच्छा लगभग भगवान की इच्छा के बराबर होती है। वेतन-जीवी की हैसियत भक्त से अधिक की नहीं होती है। विडंबना यह कि अपने किसी भी फैसले पर भगवान हस्ताक्षर नहीं करते और मालिकान भी नहीं करते। जवाबदेही तो उनकी ही होती है जिनका हस्ताक्षर होता है। बाघ की बलि नहीं होती है, मालिकान की भी नहीं। ऐसे में इसके अलावा उपाय ही क्या रह जाता है किसी रिपोर्ट के लिए कि वह मालिकान की इच्छा के अनुसार तैयार हो, माने मालिक की मेधा को संतुष्ट करे। मुश्किल तब पेश आती है जब मालिक न अपनी इच्छा को समझे न संतुष्टि को। मिस्टर लोनावाला ने मालिकान की इच्छा को समझते हुए उसके पक्ष में जो भाषण किया उसे सराहा बहुत गया। जाहिर है मिस्टर रुँगटा ने बहुत तेजी से लागू भी किया।’
अब मिस्टर लोनावाला और मिस्टर रुँगटा दोनों ही एक साथ चीख पड़े। ‘तो आपकी रिपोर्ट हमें जवाबदेह ठहरा रही है!’
अब बारी मिस्टर गोयल की थी उन्होंने चेयरमेन को कड़े लहजे में संबंधित करते हुए कहा कि इन्हें कहा जाये कि खामोशी से पूरी बात सुनें। जो कहना हो आप से कहें। निस्संदेह ये दोनों परोक्ष और अ-परोक्ष रूप से इस अपराध में शामिल हैं। ये अब भी नहीं समझ पा रहे हैं कि मामला एक मजदूर की आत्म-हत्या का है। यह कितना गंभीर मामला है ये समझ भी नहीं पा रहे। यह एक आजाद मुल्क है। इसके अपने नियम, कानून और कायदे हैं। बात कहाँ तक जा सकती है, इसका इन्हें गुमान भी नहीं है। बीच में इस तरह उत्तेजित होकर इन्होंने इस मामले के निपटारे के रास्ते में बाधा ही खड़ी है।
मिस्टर लोनावाला और मिस्टर रुँगटा दोनों ही एक साथ जितनी उत्तेजना के साथ चीख पड़े थे, उतने ही निरुत्साह मन से एक सात सॉरी कहा। चेयरमेन के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं पड़ी। मिस्टर गोयल ने फिर कहना शुरू किया। ‘मैं भी कर्मचारी होने के नाते मालिक की इच्छा से बँधा हूँ। मालिक नहीं चाहते इन दोनों महानुभावों को कोई खरोच आये। इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मालिक की इच्छा पूरी करने की मैं कोशिश करूँ। लेकिन यह आप के सहयोग के बिना संभव नहीं है। आप लोगों को व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर पूरा सहयोग करना होगा।’
इतना कहकर मिस्टर गोयल खामोश हो गये। बिना देरी किये मिस्टर लोनावाला और मिस्टर रुँगटा दोनों ने सहयोग का वचन दिया। चेयरमेन और दूसरे लोगों ने भी सहमति दी।
अब मिस्टर गोयल ने कहा कि ऑपरेटिव पार्ट पर विचार हो। तदनुसार, जाँच पूरी होने तक मिस्टर लोनावाला और मिस्टर रुँगटा दोनों ही सेवा से निलंबित रहेंगे। मिस्टर लोनावाला और मिस्टर रुँगटा दोनों ही फिर चीख पड़े। इस बार मिस्टर गोयल ने कहना जारी रखा। भीतरी बात, ये पहले की तरह काम करते रहेंगे। इन्हें कोई वित्तीय हानि नहीं होगी। इन्होंने जो भी किया मालिकान के हित में किया और मालिकान इनके हित की रक्षा करेंगे।
दूसरे दिन अख़बार में बड़ी-सी रिपोर्ट छपी। मिस्टर लोनावाला और मिस्टर रुँगटा दोनों ही निलंबित। विभागीय जाँच शुरू। युनियन के नेता के हवाले से कहा गया था कंपनी प्रभावित मजदूर को क्षतिपूर्त्ति देने की माँग पर गहराई से विचार कर रही है। जाँच रिपोर्ट आने तक हर किसी को सब्र का इंतजार करना होगा। और भी बहुत कुछ घटा इस बीच। जैसे, अगले एक सप्ताह में श्रम-कल्याण के नये डायरेक्टर का चुपचाप तबादला हो गया। श्रम-कल्याण और सीएसआर पर एक बड़ा आयोजन हुआ जिसमें जिला के आला अफसर, पत्रकार, जनसेवक की प्रशंसनीय भागीदारी रही। और भी बहुत कुछ।
यह तो ‘रिपोर्ट’ नाम की कहानी है। इस कहानी के लिखे जाने तक जाँच रिपोर्ट नहीं आई है। जाँच प्रगति पर है।
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
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