पुतला और उसकी हँसी

पुतला और उसकी हँसी

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एक कमरा है। हर तरफ से बंद। हर तरफ से खुला। यह समझना मुश्किल है। हर तरफ से बंद और हर तरफ से खुला, एक साथ कैसे संभव है! यह आधुनिक तकनीक है। महाभारत में इसकी चर्चा मिलती है। आधुनिक तकनीक से हमारे समय में यह संभव हुआ है। द्वार और दीवार का फर्क मिट गया है। दूर से देखने पर द्वार ही द्वार नजर आते हैं। कहीं कोई दीवार नहीं। पास आने पर पता चलता है, दीवार ही दीवार है। कहीं कोई द्वार नहीं। तो असल में, यह क्या है! यह दीवार भी है। यह द्वार भी है। बस पता नहीं चलता कहाँ दीवार है, कहाँ द्वार है। एक आदमी को पता है। वह आगंतुक है। आगंतुक कमरा में घुस जाता है। उसके पीछे आनेवाले को पता ही नहीं चलता, वह आदमी गया कहाँ। वह आदमी कैसे आगंतुक में बदल गया! बाकी कैसे नागंतुक बनकर बाहर रह गये! नागंतुक कमरे के अंदर जा नहीं सकते। बाहर आगंतुक दिखाई नहीं देता।

कमरा सजा-धजा है। एक आदमी दिखाई देता है। पुतला भी हो सकता है। वह आदमी है या पुतला, पता नहीं चलता है। हर चीज आँख के इशारे पर। हाथ की पहुँच में। उसकी पीठ दिखाई देती है। पीठ पर अंकित बड़ी-सी शक्ति-मुद्रा साफ-साफ दिखती है। आगंतुक न समझ आनेवाली मुख ध्वनि से शक्ति-मुद्रा को संबोधित करता है। कमरा में बहुत सारे पुतले प्रकट होते हैं। पुतला में कोई हलचल नहीं। आगंतुक फिर कुछ बुदबुदाता है। इस बार शक्ति-मुद्रा पीछे और मुख-मुद्रा सामने। साफ होता है। वह आदमी है। कमराधिपति है। आगंतुक कमराधिपति को अपनी भाषा में संबोधित करता है। कमराधिपति सुनकर मुसकुराता है। कमरे के सारे पुतले में जान आ जाती है। हरकतें होने लगती हैं। कमराधिपति अट्टहास करता है। पुतलों का दिव्य चक्षु-नृत्य आरंभ हो जाता है। अब कमराधिपति की मुख-मुद्रा पीछे, शक्ति-मुद्रा आगंतुक के सामने।

बाहर खड़े लोग चकित। कुलिश-दृष्टि। धुआँ। लपट। चीख। पुकार। हाहाकार। दलन-वृष्टि।

कृपा-दृष्टि। पुष्प-वृष्टि। अन्न-वृष्टि। धन-वृष्टि। मदन-वृष्टि।

आगंतुक कमरा से बाहर आ गया है। बाहर का दृश्य देख वह जरा भी चकित नहीं है। भ्रमित नहीं है। नागंतुकों की ओर बढ़ता है। वह अपनी अंगुली नागंतुकों की ठोंठ पर रखता है। इशारा! निर्देश! आदेश! चुप रहो। सब चुप रहो।

आगंतुक शंकित है। कमराधिपति कितने दिन तक हँसते रहेंगे। कितने दिन तक अट्टहास लगाते रहेंगे। कमराधिपति के चेहरे पर थकान छा रही है। कमराधिपति की थकान रोनी-मुद्रा में आ गयी तो क्या होगा? मुस्कान सिसकियों में बदल सकती है क्या? अट्टहास रुलाई में बदल सकती है क्या? कृपा-दृष्टि जाये भाँड़ में।   ऐसे में प्रकट-अप्रकट पुतलों का क्या होगा? दिव्य चक्षु-नृत्य का क्या होगा? कुलिश-दृष्टि का क्या होगा?

 

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