प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
सब को मालूम हो कि मुझे कुछ नहीं मालूम है
सब को मालूम है किसी को कुछ नहीं मालूम है
तेरी इस अदा पर फिदा कि कुछ नहीं मालूम है
कत्ल हुआ किसका बहा लहू कुछ नहीं मालूम है
भोला इत्ता कि काला सफेद कुछ नहीं मालूम है
बेरोजगारी, भूख, गरीबी है कुछ नहीं मालूम है
क्या लोकतंत्र है! संविधान! कुछ नहीं मालूम है
नशा में तो कहता हर कोई कुछ नहीं मालूम है
किसने खाया? क्या खाया? कुछ नहीं मालूम है
किसके हाथ में किसका हाथ कुछ नहीं मालूम है
पीठ पर है हाथ क्यों उसके कुछ नहीं मालूम है
उसे मालूम बाकी किसी को कुछ नहीं मालूम है
सब को मालूम हो कि मुझे कुछ नहीं मालूम है
सब को मालूम है किसी को कुछ नहीं मालूम है
तेरी इस अदा पर फिदा कि कुछ नहीं मालूम है
कत्ल हुआ किसका बहा लहू कुछ नहीं मालूम है
भोला इत्ता कि काला सफेद कुछ नहीं मालूम है
बेरोजगारी, भूख, गरीबी है कुछ नहीं मालूम है
क्या लोकतंत्र है! संविधान! कुछ नहीं मालूम है
नशा में तो कहता हर कोई कुछ नहीं मालूम है
किसने खाया? क्या खाया? कुछ नहीं मालूम है
किसके हाथ में किसका हाथ कुछ नहीं मालूम है
पीठ पर है हाथ क्यों उसके कुछ नहीं मालूम है
उसे मालूम बाकी किसी को कुछ नहीं मालूम है
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