प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
तुझे डाँटने का भी तो हक है नहीं करूँ तो क्या करूँ
डाँट दिमाग में है आँख में मुहब्बत करूँ तो क्या करूँ
गैर है मुझे इसका कोई इल्म नहीं करूँ तो क्या करूँ
पूछूँगा दिल से कभी फिल वक्त मैं करूँ तो क्या करूँ
हाँ होंगे कायदे जरूर मालूम नहीं करूँ तो क्या करूँ
नजर में नजर नहीं कान में हल्ला करूँ तो क्या करूँ
जो कहकर गया परदेश याद नहीं करूँ तो क्या करूँ
उड़ान पर है संविधान इन दिनों करूँ तो क्या करूँ
वापस बुलाने का हक नहीं हासिल करूँ तो क्या करूँ
ये शहर दिल्ली की रवायत है अब करूँ तो क्या करूँ
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