जीवन बीत गया हाय उनको जिगरी दोस्त बनाने में
उनको मजा आता रुठने में और मुझे बस मनाने में
समझाया खुद को आखिर क्या रखा है बुतखाने में
लेकिन गमख्वार दिल ने सिर पेश किया नजराने में
कहता भी तो किस से जो उलझता गया लजाने में
मासूम वह बहुत, वक्त है मुहब्बत का इल्म आने में
आ भी जाये हुनर यहाँ तो सैकड़ों लगे हैं आजमाने में
मुहब्बत और मेहरबानी का फर्क मिट गया जमाने में
सारा वक्त गुजर गया सच कहूँ तो रोने और रुलाने में
बाकी बीत गया अपाहिज संभावनाओं को सरियाने में
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