मैं ने सुना है, कबूल कर लूँ
कि मैं अक्सर झूठ सुनता हूँ
मैं ने सुना है कि
दिन में मजदूर बनाते थे
रात में शरीफ तोड़ आते थे
दोनों कीमत पाते थे
दोनों का बसर होता था
भूलभुलैया ऐसा ही था
मुझे नहीं, भला मैं कौन! हरकारा
हाँ, कुछ लोगों को मेरे सुनने के
था पर ऐतराज है
वे कहते हैं था नहीं है
दिन में मजदूर बनाते हैं
रात में शरीफ तोड़ आते हैं
दोनों कीमत पाते हैं
दोनों का बसर होता है
भूलभुलैया ऐसा ही है
हाँ शहर लखनऊ था कि दिल्ली है
मैं ने सुना है, कबूल कर लूँ
कि मैं अक्सर झूठ सुनता हूँ
वैसे झूठ है,
अचरज नहीं कि भीतर छुपा सच बैठा है
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