मुझे क्या लगेगा यूंही खामखा इम्तिहान देता हूँ।
तेरे वजूद का असर कहो छाया पर जान देता हूँ।
मुहब्बत में हिसाब नहीं इत्मीनान करता हूँ।
मेरी फितरत का क्या बस हैरान करता हूँ।
सच हों आपके अल्फाज जुबान कहता हूँ।
बस पत्थर की मुहब्बत अनुमान करता हूँ।
इबारत नहीं भेजते जो हाल बयान करता हूँ।
था जैसा भी प्रफुल्ल उसे कोलख्यान करता हूँ।
अच्छा खासा इश्क में तुझे हलकान करता हूँ।
कमीज तो फटी जो बची उसे गिरेबान करता हूँ।
इश्क समझ लो मेरी जान खुद को इंसान करता हूँ।
हूर और हुनर पूजकर पत्थर भगवान करता हूँ।
कुछ रुको तो फिर फिर दिल से बयान करता हूँ।
लंबी रात क्या बातचीत में बिहान करता हूँ।
जाइए कहाँ ख्वाब का ही उड़ान करता हूँ।
तकल्लुफ या तसल्ली खुद पर एहसान करता हूँ।
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
पत्थर पूज कर भगवान करता हूँ
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