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मेरा मर्सिया लिखे कोई, और तुम्हारा जिक्र न हो यह तो कुछ ऐसा ही है कि सुबह और सूरज न हो
मुमकिन नहीं फिक्र-ए-तमाम हो, तेरी फिक्र न हो अफसाना क्या, कान्हा हो, राधा हो, बिरज न हो
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